पत्रकार दीपक पंडित पर फर्जी मुकदमा : एक साजिश की कहानी,

आपको बताते चलें कि जब पत्रकारिता को दबाने के लिए सत्ता तंत्र अपने अधिकारों का दुरुपयोग करता है, तब लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता है। पत्रकार दीपक पंडित के साथ जो हुआ, वह सिर्फ एक व्यक्ति पर अत्याचार नहीं, बल्कि पूरे स्वतंत्र मीडिया पर एक हमला है।

फर्जी मुकदमे की आड़ में साजिश,

दीपक पंडित, जो अपने साहसी रिपोर्टिंग और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए जाने जाते हैं, को उपजिलाधिकारी, दो सीओ और भारी पुलिस बल की मौजूदगी में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। यह गिरफ्तारी किसी गंभीर अपराध के कारण नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार को उजागर करने की उनकी हिम्मत की सजा थी। फर्जी मुकदमे गढ़कर उन्हें चुप कराने की साजिश रची गई।

लोकतंत्र पर हमला,

जब सरकार या प्रशासन अपनी आलोचना सहन नहीं कर पाते, तब वे अपने विरोधियों को कुचलने के लिए कानून का दुरुपयोग करते हैं। यह घटना दर्शाती है कि कैसे एक निष्पक्ष पत्रकार को झूठे आरोपों में फंसाकर जेल में डाल दिया गया। इससे न केवल प्रेस की स्वतंत्रता पर चोट पहुंची है, बल्कि यह भी साफ हो गया है कि भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ बोलने वालों को किसी भी हद तक प्रताड़ित किया जा सकता है।

पत्रकारों और समाज को होना होगा एकजुट ,

बता दें कि अगर आज दीपक पंडित जेल में हैं, तो कल कोई और होगा। अगर यह चक्र नहीं रुका, तो यूंही सच बोलने वालों की आवाज़ हमेशा के लिए दबा दी जाएगी। पत्रकारिता का कार्य सत्ता की सच्चाई जनता तक पहुंचाना है, लेकिन जब सरकारें और प्रशासन पत्रकारों को ही निशाना बनाने लगे, तो यह एक खतरनाक संकेत है। ऐसे में पत्रकारों और समाज को दीपक पंडित का समर्थन करना चाहिए और उनके लिए न्याय की मांग करनी चाहिए।

पत्रकार संगठनों और आम जनता को आवाज उठानी होगी,

इस घटना पर पत्रकार संगठनों और आम जनता को आवाज उठानी होगी। अगर हम चुप रह गए, तो दीपक पंडित की तरह और भी कई पत्रकारों को इसी तरह फंसाया जाएगा। न्यायपालिका को भी इस मामले का स्वतः संज्ञान लेना चाहिए और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करनी चाहिए।

लोकतंत्र में पत्रकार का काम जनता को सच्चाई से अवगत कराना है, न कि सत्ता की कठपुतली बनना। दीपक पंडित को न्याय मिले, यह हर उस व्यक्ति की जिम्मेदारी है जो स्वतंत्रता और सच्चाई में विश्वास रखता है।

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