नेशनल दर्पण : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS ) ने शुक्रवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ अपने मतभेद की खबरों को खारिज कर दिया और इसे भ्रम पैदा करने की कोशिश करार दिया। संघ के सूत्रों ने इस बात को भी मानने से इनकार किया कि लोकसभा चुनाव परिणामों को लेकर सरसंघचालक मोहन भागवत की आलोचनात्मक टिप्पणियां सत्तारूढ़ पार्टी को निशाना बनाकर की गई थीं।
सूत्रों ने यह भी कहा कि आरएसएस और भाजपा सहित उसके सहयोगी संगठनों की तीन दिवसीय वार्षिक समन्वय बैठक केरल के पलक्कड़ जिले में 31 अगस्त से शुरू होगी। बैठक में भाजपा अध्यक्ष समेत पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के शामिल होने की उम्मीद है। आरएसएस सूत्रों ने कहा कि आरएसएस और भाजपा के बीच कोई दरार नहीं है। संघ का यह बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि विपक्षी नेताओं समेत लोगों के एक वर्ग का दावा है कि भागवत की वह टिप्पणी लोकसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं करने के बाद भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को एक संदेश है, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘सच्चा सेवक कभी अहंकारी नहीं होता।
सूत्रों के अनुसार 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद उन्होंने (भागवत ने) जो भाषण दिए थे और इस बार का जो भाषण है , इनमें बहुत अधिक अंतर नहीं है। किसी भी संबोधन में राष्ट्रीय चुनावों जैसी महत्वपूर्ण घटना का संदर्भ होना लाजिमी है। उन्होंने कहा लेकिन इसका गलत मतलब निकाला गया और भ्रम पैदा करने के लिए इसे संदर्भ से बाहर ले जाया गया। उनकी ‘अहंकार’ वाली टिप्पणी कभी भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी या भाजपा के किसी नेता के खिलाफ नहीं थी।
अपने भाषण में भागवत ने सोमवार को मणिपुर में एक साल बाद भी शांति बहाल ना होने पर चिंता जताई थी। इसके साथ ही उन्होंने चुनाव के दौरान विमर्श की आलोचना की थी और चुनाव खत्म होने और परिणाम आने के बाद क्या और कैसे होगा, इस पर अनावश्यक बातचीत के बजाय आगे बढ़ने का आह्वान किया था। विपक्षी नेताओं ने भाजपा और मोदी पर निशाना साधने के लिए उनकी टिप्पणियों को हथियार बना लिया। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा था कि भले ही ‘एक तिहाई’ प्रधानमंत्री की अंतरात्मा या मणिपुर के लोगों की बार-बार की पुकार भी उन्हें पिघला न पाई, शायद भागवत आरएसएस के पूर्व पदाधिकारी को मणिपुर जाने के लिए राजी कर सकें। आरएसएस सूत्रों ने कहा कि विपक्षी नेताओं के इस तरह के दावे कुछ और नहीं बल्कि भ्रम फैलाने की राजनीति है।
संघ सूत्रों ने भाजपा के वैचारिक संरक्षक माने जाने वाले आरएसएस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार के उस बयान से भी पल्ला झाड़ लिया जिसमें उन्होंने भाजपा पर उसके चुनावी प्रदर्शन को लेकर निशाना साधते हुए कहा था कि ‘भगवान राम ने 241 पर उन लोगों को रोका जो अहंकारी हो गए थे’। उन्होंने कहा, ”जिस पार्टी ने भगवान राम की भक्ति की लेकिन अहंकारी हो गई उसे 241 पर रोक दिया गया… हालांकि वह सबसे बड़ी पार्टी बनी।” उन्होंने कहा, “और जिन लोगों का राम में कोई विश्वास नहीं था, उन्हें एक साथ 234 पर रोक दिया।” उनका इशारा ‘इंडिया’ गठबंधन की ओर था जिसे इस चुनाव में 234 सीट मिली। आरएसएस के एक पदाधिकारी ने कहा कि यह कुमार की निजी राय है और यह संगठन के विचार को प्रतिबिंबित नहीं करती। सूत्रों ने इस बात को भी खारिज कर दिया कि आरएसएस इस बार भाजपा के समर्थन में उस तरह से चुनाव प्रक्रिया में शामिल नहीं था, जिस तरह से वह पहले रहा है। उन्होंने कहा, “आरएसएस प्रचार नहीं करता लेकिन लोगों में जागरूकता पैदा करता है और उसने चुनाव के दौरान अपना काम किया। पूरे देश में हमने लाखों सभाएं की हैं। अकेले दिल्ली में हमने एक लाख से अधिक छोटे समूहों की बैठकें कीं।” केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री जेपी नड्डा की जगह नए भाजपा अध्यक्ष की नियुक्ति की संभावना के बारे में पूछे जाने पर आरएसएस सूत्रों ने कहा कि उनका संगठन हमेशा इस तरह के महत्वपूर्ण निर्णय के लिए परामर्श प्रक्रिया का हिस्सा रहा है। एक सूत्र ने कहा, “इस बार भी स्थिति अलग नहीं होगी।” उन्होंने कहा कि भाजपा में आरएसएस पृष्ठभूमि वाले नेताओं का इतिहास रहा है। उनसे नड्डा की इस कथित टिप्पणी के बारे में पूछा गया कि भाजपा को आरएसएस की उस तरह से जरूरत नहीं है जैसी उसे पहले जरूरत होती थी क्योंकि पार्टी का अपना संगठन मजबूत हो गया है, तो सूत्र ने कहा कि आरएसएस के स्वयंसेवकों ने इस पर चर्चा की और फिर अपने काम में जुट गए।