foreign direct investment in india

foreign direct investment in india अहम सवाल है कि अगर भारत निवेशकों की पहली पसंद बना हुआ है, तो असल में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ क्यों नहीं रहा है? एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 में एफडीआई में 22 प्रतिशत की गिरावट आई।  यह रिपोर्ट फिर सुर्खियों में है कि निवेश करने के लिए भारत दुनिया की सबसे पहली पसंद बना हुआ है।

foreign direct investment in india सकरात्‍मक खबरों की मांग

इन्वेस्को नामक संस्था ने केंद्रीय बैंकों और वेल्थ फंड्स के सर्वे के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है। और चूंकि इस दौर में भारतीय मीडिया में सकारात्मक खबरों की खूब मांग है, तो उसमें इस रिपोर्ट को खूब जगह भी मिली है। लेकिन अहम सवाल है कि अगर भारत पहली पसंद बना हुआ है, तो असल में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ क्यों नहीं रहा है? एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 में एफडीआई में 22 प्रतिशत की गिरावट आई। foreign direct investment in india

जबकि यह वो वर्ष रहा, जब ह चीन से हट रहे निवेशकों के हटने की खबरें लगातार आती रहीं। इस ट्रेंड को चाइना+वन कहा जा रहा है। यानी निवेशक चीन से पूरी तरह नहीं हट रहे हैं, लेकिन वे अपने निवेश का एक हिस्सा किसी अन्य देश में ले जा रहे हैं। अब खबर है कि इस ट्रेंड का सबसे ज्यादा वियतनाम उठा ले गया है।

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foreign direct investment in india इस बीच भारत के इलेक्ट्रॉनिक हब बनने का भी खूब शोर है। मगर यह भी अभी उम्मीदों के दायरे में ही है। असलियत यह है कि इलेक्ट्रॉनिक निर्यात की ताजा रैंकिंग में भारत 26वें नंबर पर है। यानी इस मामले में वह चीन, दक्षिण कोरिया और वियतनाम से तो पीछे है ही, मलेशिया, मेक्सिको, थाईलैंड और  फिलीपीन्स भी उससे आगे हैँ। इसलिए मैनुफैक्चरिंग के लिहाज से उपरोक्त रिपोर्ट को बहुत वजन नहीं देया जा सकता। बहरहाल, ये सर्वे जिन इकाइयों के बीच उनकी प्राथमिकता संभवत: अलग है।

foreign direct investment in india यह हकीकत है कि शेयर कारोबार के मामले में भारत एक हॉट स्पॉट बना हुआ है। इन्वेस्को की स्टडी में 57 केंद्रीय बैंकों और 85 सरकारी निवेश फंड शामिल हुए। उनके लिए निवेश का मतलब संभवत: शेयरों में निवेश ही है। सर्वे में शामिल 85 फीसदी इकाइयों ने कहा कि मुद्रास्फीति इस दशक में तो उच्च स्तर पर बनी रहेगी। ऐसे माहौल में सोना और उभरते बाजारों के बॉन्ड निवेश के उचित विकल्प हो सकते हैँ। और यही हो भी रहा है। लेकिन इससे आमजन की खुशहाली का रास्ता नहीं निकलता।

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